Wednesday, November 19, 2008

उसका वह आचरण..

पाठकों से निवेदन है कि इस कविता को एक छोटे बालक की रचना समझकर पढ़ें, नाकि किसी प्रेमचंद की ;), इसे मैंने कक्षा VI में एक कवि सम्मलेन की प्रतियोगिता के लिए लिखी थी, और खुशी की बात यह है कि इस कविता ने मुझे जीत भी दिलाई :)

उसका वह आचरण,
कैसे करता इसका वर्णन,
सभी को चुभता रहता,
काँटों की तरह परेशान हमेशा करता रहता |

उसका वह आचरण,
मास्टर जी भी गुस्सा करते,
बार-बार सुधारते रहते,
लेकिन वह शैतान भला,
समझता कब यह विचित्र कला |

उसका वह आचरण,
छोड़ देता अपना सभी कार्य अधुरा,
कभी नही करता किसी भी कार्य को पुरा,
भाग जाता अपने मित्रों के संग,
कर देता था सबके खेल को भंग |

उसे किसी की भी नहीं थी परवाह,
यह भी नही की -
कितना तेज होगा मास्टर जी के डंडे का प्रवाह,
किसी नए बहने का अविष्कार करता रहता,
किसी-न-किसी को मूर्ख बनाता रहता |

उसका वह आचरण,
उम्र हुई उसकी तेईस,
मिल गई उसे एक सुंदर सी जाया,
परन्तु कुदरत की यह क्या माया,
तब भी विदा न हुआ उसका अलौकिक रूप,
यदि लाता अपने में थोड़ा बदलाव,
दिख जाता उसे अपना दीर्घ स्वरुप |

उसका वह आचरण,
उसकी यह परम्परा चलती आई,
और एक दिन प्रलय साथ लाई,
मिला उस वीर योध्धा के विरुद्ध एक भयंकर रिपोर्ट,
बना दिया उसके आचार्य ने कॉलेज को कोर्ट,
पीट-पीट कर बना दिया उसे एक पुतला,
और कर दिया उसे दुबला-पतला,
थका हारा बेचारा घर लौटा,
और खाया श्रीमती जी से जूता |

उसका वह आचरण,
रोज चलता था वह माईल्स,
दिखता था सबको अपना फाईल्स,
दी उसने IIT की परीक्षा,
पर उसके प्रशनपत्र की हुई नही समीक्षा |

त्याग दिया उसने यह रास्ता,
ले गया मुंबई अपना बस्ता,
क्रिकेटर बनना ठान रखा था,
लेकिन भाग्य में कुछ और लिखा था,
सचिन जैसे सितारों के साथ,
रोज मिलाता था अपना हाथ,
परन्तु जमा नही वहाँ पर,
निकाल दिया गया धक्के मारकर |

(घर पहुँचते ही)
श्रीमती जी से मिला न कोई आहार,
शुरू कर दिया उसने गधे का व्यापार,
करता था बकवास हर बार,
पहना देते थे लोग उसे हार,
और इस तरह हुआ वह ग्राम-अध्यक्ष,
रखता था अपना विचार सबके समक्ष |

अतः,
अब आप सबसे है मेरा यह निवेदन,
की- होने न देना अपनी मर्यादा का पतन |


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